Tuesday, February 8, 2022

  श्रेष्ट भूमी हरियाणा 



हरि का नाम हरियाणा स 

श्रेष्ट भूमी हरियाणा स 


श्री गीता और वेद- ज्ञान की

म्न्त्र- हवन और योग- ध्यान की

पावन भूमी हरियाणा स 

श्रेष्ट भूमी हरियाणा स 


कर्म - योग का मार्ग बताव     ( बताए )

धर्म- मार्ग अपनाणा सिखाव    (सिखाए)

भद्रकाली के चरण -कमल जंहा 

मङ्गल भूमी हरीयाणा स 

श्रेष्ट भूमी हरियाणा स 


उन्नत -उर्वर , उज्वल- उतम 

कण -कण से यह सोना उगले 

बहे सरस्वती की धारा स

श्रेष्ट भूमी हरियाणा स 


जङ्गम -जोगी, राग- रागीनि 

सुर्यवीर पुत्रों की जननी

वीर भूमी  हरियाणा स 

श्रेष्ट भूमी हरियाणा स 


खेलों  में परचम लह्रराए 

भारत मां की शान बडाए 

शिक्षा- फ़ोज ,खेती- उधोग 

सबमे आगे हरीयाणा स 

श्रेष्ट भूमी हरियाणा स


तीज -फ़ाग, संकरात -दीवाली

हल्वा- लाडू , चूरमा- सवाली

जंहा दूध -दही का खाणा स

सबसे न्यारा  हरियाणा स 

श्रेष्ट भूमी हरियाणा स


बनजो -बीन और डोल- नगाडे

डमरु -चिमटे और अखाडे 

म्हारा जोशीला  हरियाणा स

श्रेष्ट भुमि हरियाणा स


मधुर -मधुर और मीठी बोली 

मोर -पपिहा  और हरियाली 

समरसता और भाई चारा 

देसा म देस हरियाणा स 


भारत मा की श्रेष्ट धरा स

इसका मान बड्डाणा स

हरि का नाम हरियाणा स 

श्रेष्ट भुमि हरियाणा स



Sunday, November 28, 2021

Haryana Geet

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भारत उत्सव

 भारत उत्सव 
 
भारत माता का जयकारा

कर लो मिल सब साथी
इस मिट्टी में जन्म लिया
हम सब भारतवासी
 
सतरंगी है धरा हमारी
पुश्पित पल्ल्वित, सबसे न्यारि
सबसे  सुन्दर, सब्से प्यारि
विश्व पट्ल पर करे स्थापित
      भारत उत्सव चलो मनाएँ
        हम सब भारतवासी
 
सुर-संगीत की छटा बिखेरे
        आंगन -आंगन खुशीयाँ लाएँ
         हर  घर में उजियारा लाएँ
         हर  मन में आनन्द जगाएँ
         भारत उत्सव चलो मनाएँ
          हम सब भारतवासी
 
माँ को ध़ानी चुनर उडाएँ
         दीप जलाएँ तिमिर मिटाएँ
         तिलक लगाएँ शुभकर गाएँ
         मङ्गल मङ्गल मङ्गल गाएँ
        भारत उत्सव चलो मनाएँ
         हम सब भारतवासी
   प्रेम सुधा कण-कण से बरसे
        सबके मन को निर्मल कर दे
   राम राज्य फिर से ले आएँ
सतयुग की  कर ले तैयारी 
मिलकर चले ,और आगे बढें सब
हम सब भारतवासी
 
 


Tuesday, December 6, 2016

अधूरी कहानी 'कूड़ा' को पड़ने के लिए कई साहित्य प्रेमियो शोभनकर , सुशील, अनुपमा, गुलज़ार , हितेश के अनुरोध पर पूरी कहानी को ब्लॉग पर पोस्ट कर रही हूँ. इस सहयोग एवं प्रेम के लिए धन्यवाद


कूड़ा 

मेरी ये कहानी उन सभी महिलाओं को समर्पित जो मेहनतकश है .....मर्दों से कही ज्यादा मर्द.
जानती हूँ वो नहीं पढ़  पाएंगी इसे ....उनकी किस्मत मैं कहाँ पढाई ...पर शायद वो जो इन पर अत्याचार करती है उनकी पहुँच है मीडिया तक .....उनमे से यदि एक भी बदल जाये तो मैं समझूंगी के मेरी कहानी सफल हुई  .....


अरे मुई बिमला ....कहाँ मर गई 
आई मेमसाहेब----मेमसाहेब की सर्द चीरती चिलाती-चीख सुन बिमला चौंक गई.....कैसी है ये दो नंबर वाली मेमसाहेब एक कप ची की प्याली दे कर सोचती है के बहुते बड़ा अहसान कर दिया ---हम पर...बदले मैं अब रोज से चार गुना कम करवाएगी एक प्याली चाय के ..-----और चाय भी कैसी काला पानी ..दो बूंद दूध डाल दिया मनो भोले शंकर पे जल चढ़ावे बखत डाल देते है ..
हे राम ...मैं भी बे बखत  क्या सोच रही हूँ .....बिमला सोचते हुए उठने लगी ..राम राम अभी तो दो कोठियों का काम पड़ा है -----और कई का कूड़ा उठाना है..
बिमला ----अरे इधर तो आ चाय पि ली हो तो..जरा ककर तो दबा दे और सर मैं भी तेल लगा दे ......आजकल तू बहुत हरामखोरी करती है....अब मेमसाहेब क्या जाने बिमला की व्यथा -------------सोचे जा रही थी और में साहेब की चम्पी भी कर रही थी...
लो ये तो सो गई.....अच्छा तो मैं जाती हूँ....कह कर भागी ...न जाने अब और क्या क्या करवाएगी......
सड़क पार  की और पहुँची बिमला ठेकेदार की कोठी पे... --ठेकेदार जी ने तो एक बड़ा कूड़ाघर बनवाया है घर के बाहर...लोग मंदिर बनावे और ये....
कूड़ा उठाते उठाते सोच रही थी हे प्रभु तेरी लीला ...कितना फर्क है मेरी बस्ती के कूड़े और साहेब के कूड़े मैं.
अंडे के छिलके , गले सड़े मुर्गे की आधी चाबी टांगे, शराब की खली बोतले, केक- पेस्ट्री , न जाने क्या क्या .....टिक्का, चौमिन ....
अरे क्यों न हो आखिर ठेकेदार साहेब रोज रोज किसी न किसी मुर्गे को फांस लाते है पार्टी के लिए ....डेरो खाना बचता है और फ़ेंक देते है कूड़े मैं ..
बिमला को अपने बेटे की यद् आई जो रोज ही मांगता है केक ...माँ हम का भी केक ला दो न.......
अरे मेरी ही गलती है एक दिन इयह से बचा के घर ले गई और तब ही से  मुए उह के मुह को चढ़ गया स्वाद .......
एक बार तो बिमला के मन आया के निकल ले कूड़े से थोडा सा केक बंटू के लिए ........न न खा ले गा रुखी सुखी .
बिमला सोचने लगी एक हमारा कूड़ा है , जी माँ कूड़े के नाम पर चूल्हे की राख........सब्जी के छिलके की भी सब्जी बना लेत है...और नहीं त अपनी बकरी को खिला देते है . पेट भरने को रोटी नहीं है कोड़ा कहाँ से होइब ..
बस्ती मैं सब लोगो का यही हाल है बचन को गला सदा मिटी मैं जो भी मिले खा लेत है बेचारे ,...कूड़ा तो बड़े घरो की मिलकियत है ..
बस्ती में  तो सब्जी वाला भी आता है तो वो सब्जी  भी कूड़ा ही  होती है ...बची. खुची , गली-सड़ी
हाय हाय आज का  हो गया हम का .......इतना काहे सर खपा रहे .........बिमला बुदबुदाई 

अरे अब दागदार साहेब के यहाँ चलते है ....उनका कूड़ा तो उन से भी निराला है....एकदम बिंदास....उह क्या कहत अंजीर , आम्ब सूखे मेवे और उ टमाटर का पानी का पैकेट ,   अरे दागदार साहेब का कूड़ा तो वो वो कही भी मिले तो पहचान लेईब. की इ दागदार जी का कूड़ा है .....अब इतने बरस हो गए बिमला को काम करते की देख कर ही समझ जाती है की किसके घर पार्टी हुई , किसके शादी कि दावत और कौन मनाये है  हॉट जन्मदिन .कूड़ा न हुआ  मा नो अमीरों की जन्मपत्री है. जो सारे राज खोल देता है के किस के क्या चल रहा है. मुर्गा बना शराब आई , शराब आई तो शबाब आया ...सब राज खोल देता है....
और ये कूड़ा ही तो कई बार उसके भी तो लालच का कारण बना है...वो बेटी की शादी के लिए उठा ले गई थी ड़ो नम्बर वाली का चटकनीवाला संदूक और वो बड़े अफसर की बीवी न जाने क्या लगावत है लप्स्टिक , बिंदी,  पुराणी चूडिया...झुमके का जाने का...नाम भी नहीं जानत.......सब ले गए बिटिया के लिए ......
और तो और कूड़ा देख कर बटा देती है की किस के घर का कूड़ा है ------
  , पञ्च साल की थी तो माँ के साथ आने लगी थी ,,,, सोचा था बियाह के बाद छुट जएय्गा पर ......
तब से आज तक उसकी तक़दीर कूड़ा ही बन गई है........
ये साले अमीर लोग भी न कितना खाना बर्बाद करते है . अरे इतने मैं तो हमारे चार घरों का चूल्हा जले .अरे नहीं किसी को दी दे ...और नहीं तो गईया को ही डाल दे बेचारी कूड़े मैं से छिलके छांट कर  खाती है ..और साथ मैं पिलास्टिक भी खा जाती है . ये सेठानी तो देखो दस नंबर वाली सारा दिन चपर चपर खाती रहती है पड़े पड़े फूल के बैंगन हुई गई है ......सारा दिन दागदार के चकर कटत है ...और कहती है हाय मर गई..ये हो गया वो हो गया ......बिमला जरा पैर दबा ,, कमर दबा ..ये कर वो कर...बिमला बुदबुदाते हुए और तेज कदमो से घर को चल पड़ी . रस्ते मैं कूड़ा बीनते बच्चों को देख ठिठक कर रुक गई...कैसे हाथ मैं थैली पिलास्तिक की और कूड़े के देर मैं कुछ छांट रहे थे , कोई खाली  बोतल , कोई प्लास्टिक का सामान , कागज ...........सुख हडियों के दांचे ये काले कलूटे , पथरी आँखों वाले , भरे बल मनो बरसो से ..बरसो क्या कभी न नहाये हो ...
इनके लिए ये कूड़ा ही जीने का साधन है .....यही इनकी रोजी रोटी का जरिया है......इन्हें देख बिमला की आंख भर आई ...हे राम हम तो बहुत ही ठीक है .......काम से काम महीने के हजार पटक देत है ...ये देखो कूड़े के देर पर ही जिन्दगी की गाड़ी ड़ो रहे है. 

ये सोच बिमला ने बचा -खुचा खाने का सामान जो कोठी वालियों ने दिया था उन बच्चो मैं बाँट दिया और चल दी बस्ती की और .........एक शांति का भाव चेहरे पे लिए.............आज वो उन बड़े महलो वालो से कही जयादा अमिर और तृप्त ........

Tuesday, November 17, 2015

मैथ्स के प्रोफ की बीवी के लिए खत लिखा तो कुछ कंप्यूटर के प्रोफ नाराज हो गए के हमें भी कुछ ऐसा बना बनाया मसाला लिख के दे दो जो हम अपनी प्रियतमा को कट कॉपी पेस्ट करके  भेज सके. तो जनाब ये कंप्यूटर के प्रोफ़सरो को खुश करने के लिए लिखना पड़ा। डा  जांगड़ा जी और प्रियंका जी को समर्पित। 
 अब प्रोफ़सरो के ही दिमाग में हमारे प्रति  नाराजगी का वायरस आ  गया तो हम तो हैंग हो जाएंगे। अब ये क्या खत लिखेंगे भला जब देखो तब इनका मूड हैंग हो जाता है।  पत्नी की बात की कोडिंग  हमेशा गलत करते है और जवाब बाइनरी में देते है। 
अरे कंप्यूटर के प्रोफ की दिमाग की डिफाल्ट स्कैनिंग भला कोन आसान काम है।खैर कोशिश करके देखते हैं।   न जाने कौन कौन से सिक्योरिटी के सॉफ्टवेयर लगा रखे होंगे।  और इनसे पंगा न ही ले तो अच्छा पता नहीं सारा डाटा हैक करके बदला ले।  इनकी प्रेमिका तो खुद इन की हैकिंग की आदत से परेशान है। क्योकि बेचारी इन से कुछ छुपा ही नहीं पाती। 
एक दिन शिकायत कर रही थी की उससे भी डिजिटल सिग्नल्स में ही बात करत्ते है।  इनका एंटीना कब किस से जुड़ जाये पता ही नहीं चलता।  कभी कहते है है तुम मेरे गूगल हो और मैं  तुम्हारा विकिपीडिआ।  तंग आ गई हूँ , कभी शांत बैठ कर दो पल बात नहीं करते जब देखो इनकी डऊनलोडिंग  चली रहती है।  मैं कैसे इनके प्यार को एक्सेस करु।  प्रेम शब्द का तो इनके अकाउंट में नाम ही नहीं हैं। कहते है प्रिये तू वो algorithm है जिसका समाधान बिल गेट्स भी नहीं कर पाया। और न ही मेरे पास तुम्हारा कोई बैकअप।  
इनके अनुसार इनकी पत्नी अभी एनालॉग मोड़ पर ही है डिजिटल नहीं हुई. इनका बस चले तो ये खाने को भी डिजिटल करदे।  और इनकी पत्नी के अनुसार ये इतनी डिजिटल हो गए के इनकी ऍप्लिकेशन्स अब उसकी समझ से बाहर है। प्रोफ साहेब की और प्रेमिका की बैंड -विथ इतना टकराती है के जल्दी ही इनके प्यार का ब्राउज़र ब्लास्ट करने वाला है।  न उनकी इनपे कमांड  है न इनकी कॉन्फ़िगरेशन उनकी समझ में आती।  ये कहते है इनकी प्रिये का cpu ही नहीं है वो कहती है इनके सर्वर में ही गड़बड़ी है। एक दिन तो इनकी डिजिटल पत्नी ने धमकी दे दी के मैं तुम्हारा फोल्डर बना के हमेशा के लिए डिलीट कर दूंगी अब प्रोफ साहेब डरते थोड़े ही है बोले कर लो मै  retrieve कर लूंगा।  म फॉर्मेट कर दूंगी , तो बोले मैं हार्ड डिस्क उड़ा  दूंगा।  भाई इनमे  इनमे कैसे प्यार होगा। और तो और इनके लड़ाई सुनो। …वो बोली तुम malware हो  -ये बोले तुम ट्रोज़न।  वो बोली तू स्पैम ये बोले तुम worm अब इनका कुछ नहीं हो सकता।  अब प्रोफ साहेब की प्रोसेसिंग 200 GB और पत्नी बेचारी 756 MB प्यार हो भी तो कैसे।  
बेचारे एक दिन मंदिर में भोले नाथ के आगे बोल रहे थे की हे भगवन कोई ऐसा एंटी पत्नी वायरस बना ददो  मैं  तुम्हारी ऊपर २० GB का पेन ड्राइव और एक  नए भजनो की ६४ gb की चिप  भेँट करूँगा।  हे पर्भु pl मॉडेम ओन करके मेरे साथ लोग इन करो वर्ना  मैं यहीं खुद को रीसायकल बिन में भेझ दूंगा।  मेरी RAM में अब और प्रोग्रम्मिंग की ताकत नहीं बची।  मेरी मेमोरी भी ठीक से नेटवर्किंग नहीं कर रही अब आप ही मुझे रिफ्रेश कर सकते हो। 
तो हमने इनके लिए इनकी डिजिटल पत्नी को लिखा।  हे मेरी प्राणो की हार्ड ड्राइव ,म तुम्हे इतना चाहता हूँ जैसे मेरे कंप्यूटर का सीक्रेट डेटा , तुम मेरे लिये पासवर्ड से भी कीमती हो।  मैंने तुम्हारे लिए अपने जज्बातों को हमेशा अपने दिल वाले फोल्डर में छुपा के रखता हूँ देखता हूँ आँखों में तो अल्फा किरणे मेरे मन में कई रंगो का स्पेक्ट्रम फेंकने लगती है। तुम्हारी हंसी के पिक्स्ल ही तो मेरा पावर  बैकअप है।  तुम्हारी रुठने के  high वोल्टास के करंट ही तो मेरी बैटरी को १०० % चार्ज रखते है. तुम मेरे लिए क्या हो म बाइनरी में बता सकता हूँ मेरा सिक्योरिटी सिस्टम का पासवर्ड तुम हो।  अब गुस्सा छोडो क्यों गेगा बाइट  में मुझे डैमेज करती हो।  ओ मेरी गूगल अब मन भी जाओ 
तुम्हारा malware 

Friday, February 27, 2015

महिला ने सोने की अंगूठी बेच कर भरी बच्चों की फीस

पिछले छ महीने से नहीं मिली तनख्वाह, भूखे मर रहे है 800 आउटसोर्सिंग कर्मचारियों के परिवार 

'हर बच्चे  को पढ़ने का अधिकार है', ये नारा अब बेमानी हो गया। सँविधान द्वारा दिया गया ये अधिकार कैसे पूरा होगा जब छ -छः महीने तनख्वाह नहीं मिलेगी. लोग भूखे मर रहे है , औरते अपने जेवर बेच कर घर का खर्च चला रही  है. स्कूल से बच्चोें के नाम काट दिए गए है। दूध वाला , राशन वाला अब सब ने जवाब देने शुरू कर दिए है।  और जब कोई और चारा नहीं रहा तो ये बेबस , लाचार लोग अनशन पर बैठने को मजबूर हो गए।  अब इनके पास मरने के सिवा कोई चारा नही. 
एक महिला ने बताया आज वो वायदा करके ऐ है जिनसे उसने 6 महीने राशन उधर लिया है।  आज वो या तो वो तनख्वाह लेकर घर जाएगी या यही मारना पसंद करेगी कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के प्रांगण में।   लेकिन किसी के कानो  पर इनके दर्द की चीख असर नहीं करती , न ही किसी का दिल पसीजता।  और हम सब भी केवल तमाशा ही देख रहे है।  भारत के सविधान के अनुसार एक दिन भी तनख्वाह रोकना अपराध है। और यहाँ तो चार चार छ छ महीने से तनख्वाह नहीं मिली।  हम गोरे  अंग्रेजो को तो आज तक कोसते है परन्तु इन काले अंग्रेजो का  क्या जो आज तक गरीब और लाचार  जनता पर अत्याचार और ज़ुल्म कर रहे है।  
जरा सोचे और इन के साथ अ कर इनका होसला बढ़ाये और देखे के हम इनके लिए क्या कर सकते है   


Wednesday, September 24, 2014

मैथ्स के प्रोoफ़सर का खत अपनी प्रियेतम के नाम

मैथ्स में प्रेम 


प्रिये चन्द्रकली (चाँद की 1 बटा  16 वीं ), प्रेम पूर्ण  दोनों हाथो की सतहों को  कोणीय यानि शंकु मुद्रा में जोङ कर प्रणाम 
लव यू 2  3 4  ……अपरिमित  infinite 
जब से तुमसे आँखे 4 हुई 
तब से दिल में १००० वाट के बल्ब जल उठे ,तेरे इश्क़ में २ दूनी 5  होने लगा. ,दर्द दुगुना हो गया।  और नींद 9 दो 11 हो गई। 
2 पल भी नहीं रह सकता तुम बिन।  दोस्तों से मिलना माइनस  गया और मेरी वजह से पापा का cholesterol बढ़(+)  गया हैं 
तुम नहीं  मिलती तो  मेरे बी पि का वर्गमूल  घनत्व बढ़ तीनगुना हो जाता है।  गुस्से का पारा 100 डिग्री  हो जाता है। दिन रात  तारे गिनता रहता हूँ। 
और तो और तुम्हारी याद में मेरा वज़न ६० से ५० हो गया है।  और खून गुणात्मक रूप से घट  कर यानि तीन चौथाई रह गया है।  यूँ ही चलता रहा तो मुझ में और किसी पागल में बस 19 , 20 का ही फर्क महसूस होगा।   
24 घंटे कैसे गुजर जाते है पता नहीं चलता एक एक पल तुम्हारी यादों में खोया हूँ।  तुम तो ऐसे किनारा कर गई  जैसे  900 चूहे खा के बिली हज़  को चली ,कितनी सुन्दर सुहानी सावन की विभिन्न आकारो  की बद्री छाई  है काश तुम यहाँ होती , पर मुझे  पता है तम नहीं आओगी और ना  9 मन तेल होगा न राधा नाचेगी।  बरस बरस के सावन मेरे मन में आग की तीरभुजी आकारिया लपटे उठा रहा  है।  सब कुछ मैथ के पर्चे की तरह धुंधला धुंधला नजर आ रहा है।    पूनम का पूर्ण वृतया चाँद अपने 360 ० व्रत को  बनाये कितना लुभा रहा है पर तुम नहीं तो ये सब शुन्य यानि जीरो का आभास देता है। 
ये नभ की गोलाईयां, ये  बादलों की अंगड़ाइयां तुम्हारा अण्डीय आकारनुमा चेहरे की  याद दिलाती है।  गोलाकार आँखे , 32 दांतो की दूधिया, समान रूप में विभाजित श्रृंखला ,काले घने लंबवत शरीर को अर्ध विभाजित करते लम्बे उलझे बालों की यादें  मेरे ज़हन में उलटे सीधे सवाल करते है। तुम्हारे  होठों  का वो बिन्दुऑकारिया तिल , और बदन की भिन्न भिन्न रेखागणितीय ,२ डी और 3 डी आकारीय  चित्र यानि शेप्स  दिमाग के क्षेत्रीय फल को लगभग शुन्य कर देते है। 
प्रिये न जाने कितने वर्ग क्षेत्रफल दूर हो तुम मुझ से जो मैं  तुम्हे छू भी नहीं सकता। मैं  पलके बिछाये  बैठा हूँ ३ -५ न करो बस जल्दी से २०० की गति से मेरे पास चली आओ।  तुम मुझ से 1000 किलोमीटर दूर हो परन्तु यदि वहां से १५०-२०० की गति से आओ  तो तुम १२ घंटे में मेरी बाँहों के 2  फुटिय अर्धवृत्ताकार घेरे में समां जाओगी हम 1  हो जाएंगे और हम दोनों एक दूसरे में ऐसे समां  जायेंगे जैसे ब्रैकेट यानि वर्गाकार कोष्ठक  में बंधे अंक।  
अगर तुम जल्दी नहीं आई तो मेरा खून को दौरा बहुपदीय अंको की तरह घट कर माइनस में आ  जाएगा।  प्रिये मेरे शरीर का हर फ्रैक्शन (खंड) सिर्फ तुम्हारा है इसमें करेक्शन का अधिकार भी सिर्फ तुम्हारा है।  इसकी लंबाई ऊंचाई चौड़ाई में सिर्फ तुम ही तुम हो ,चाहो तो क्षेत्रफल निकाल  कर देख लो।  प्रिये मेरा प्यार १०० प्रतिशत सच्चा है।  मुझे हर चीझ में , हर  अंक, हर फार्मूले  में तुम ही नजर आती हो।  जब भी मैं  कक्षा में व्रृत का फार्मूला बताता हूँ तो तुम्हारी गोलाइयाँ मेरी आँखों में एक बड़ा सा दीर्घव्रत बनाकर धुंधला जाती है।  बस और क्या कहूँ यदि तुम २४ घंटे में नहीं आई तो मैं  चौथी  मंजिल की 60 फुट की ऊंचाई से कूद कर अपने आप को विखंडित कर लूंगा और कुछ भी शेष न बचेगा।  

तुम्हारा हीरो  मगर दुनिया के लिए  0 

 सिर्फ तुम्हारा  'चतुर्भुज चतुर्वेदी'