Monday, April 18, 2011

एक गीत


गुच्छे घटाओं के छाने लगे
के बीते दिन याद आने लगे  
       मेले अकेले  लगाने लगे 
       के सोये अरमान जगाने लगे 
    

कही कुछ अनकही सी कहानी 
तस्वुर वही फिर से  आने लगे 
सुलगते सिसकते वो दागे-ए- मुहोबत 
के रिसने लगे करहाने लगे 

पपीहे वीणा बजाने लगे
        पते भी ताने सुनाने लगे 
        नाचन लगे मोर सुर ताल में  
        के भवरे नगाड़े बजाने लगे 
 
  तन्हाईया रास  आने लगी 
        अंगड़ाईया गुनगुनाने लगी 
 लड़कपन हमारा जफ़ाए तुम्हारी 
लबो पे वही गीत लाने लगी  

बहकते बदन की  महकती खुशबु 
आँचल हमारा उड़ाने लगे 
जुगनू नहाये हुए चांदनी में
दर्पण पुराने दिखाने लगे 

मनाते है खुद रूठ जाते है यु ही 
मचलते है खुद को सताने लगे 
भरी दोपहरी, रातो में युही 
 कोठे के  चकर लगाने लगे 

muktak

तुम हवा के झोके से  रुख  बदल लेते 
मैं नदी सी रास्ते बदलती नहीं खुद बनाती हूँ 
तुम बादल से चंचल उड़ते डोलते बरसते 
मैं धरा सी अडिग अचल गहन धर्य  विश्वास दिलाती हूँ 

Monday, April 4, 2011

एक गीत

'आत्मा की पुकार'       

खुद से बाते करती हूँ 
गिरती और सभलती हूँ 

खामोश शाम
 बोझिल सवेरा 
बुझते दिए का
 ढलता सुनहरा
परछाई सी सिसकती हूँ 

खुद से बाते करती हूँ 
गिरती और सभलती हूँ 

आते जाते 
दीवारों पे
रस्ते-रस्ते 
गलियारों में 
उसका नाम खुरचती हूँ 

खुद से बाते करती हूँ 
गिरती और सभलती हूँ 

कान्हा तो संग 
खेरू होरी 
नेह तेरे सो 
देह भिगो ली 
मन का मनका जप्ती हूँ 

खुद से बाते करती हूँ 
गिरती और सभलती हूँ