रोज की तरह आज फिर फूलो के बगीचे से गुजरे, तो उन सुर्ख गुलाबो देख एक ख्याल जगा . आँखों में एक चमक उभरी --अरे ये ये फुल कितने ताजगी भरे कितने शोख है और फुल से उसका नक्श उभरने लगा . हर फुल से धीमा धीमा संगीत गुन्झ रहा था . और अनायास ही हम मुस्कुराने लगे . एक आवाज आई .तोड़ लो न फुल उसके लिए . इस ख्याल से पहले तो हम मुस्काए, फिर शर्माए और फिर घबराये ..के किसी ने देख लिया तो..और लीजिये फुल तोड़ने से पहले ही खयालो में गम हो गए ......और लगे एक सपना देखने ...खुली आँखों से सपना . सपना उस दिन का जब वो हमें फुल देंगे ......उह्ह्ह्हह्ह...कांटा सपना फिर टुटा .....पर क्या कभी ऐसा होगा ...और होगा तो कब होगा ..जब वो हमें फुल दे ......और उनके फुल देने के अहसास से ही हमें गुदगुदा गया था और हम खो गए फिर सपने में .............गर्र्र्रर्र्र दर्र्रर्र्र ....अरे भाई मरने का इरादा है क्या .......मोटर सयिकिल की आवाज ने हम चौंका दिया ......और हमने देखा की इस सपने को बुनते बुनते हम पार्क से रोड तक आ चुके थे ....
तभी एक कर्मचारी ने दूसरी महिला कर्मचारी से कहा एंटी इन्होने तो नई नई पगड़ी पहनी है ..........अप थक जोगी आराम कर लो ......और मुझे हंसी आ गई क्या ये प्यार भी नया पुराना होता है क्या ........प्यार तो प्यार है ..........
उठो उठो आज कॉलेज नहीं जाना है क्या .................लो सपना फिर टूट गया था प्यार का ........पर ये सपना भी कितना सुहाना था झुटा ही सही टुटा ही सही ...............अहसास तो करा दिया .............