Wednesday, August 31, 2011

जरुरत है " स्वंम पाल " बिल की

जन लोक पाल बिल के प्रति आस्था देख कर अच्छा लगा ...........आशा है के जल्दी ही शुरू भी होगा . ये आम आदमी अवं गणतंत्र की बड़ी जीत है . कुछ सवाल छोड़ गया ये आन्दोलन 
क्या ये शुरू होते ही कुछ जादू होगा ? क्या  भ्रष्टाचार जादू की माफिक गायब हो सकेगा ? नहीं ......कोई भी बिल या कानून पूर्णता उस अपराध को दूर नहीं कर पायेगा जब तक के आम जनता की रग में उस कानून को अपनाने और मानने की इच्छा जागृत न हो . 
जी हाँ जरुरत है स्वंम पाल बिल की ..........यानि जनता खुद पर एक नियंत्रण लगाये और ये वादा करे की न क्या  भ्रष्टाचार करेंगे न होने देंगे . 
तो क्या आप टायर है स्वं पाल के लिए ?         आप के जवाब का इंतजार रहेगा ....क्यूँ न एक वादा करे खुद से 

Monday, August 29, 2011

muktak


हुजूम उमड़ पड़ा है तल्खियो का ज़माने में 
हर शख्स खुद से लड़ पड़ा है ज़माने में 
बदली है नीयत हवाए बदल गई  
मुश्किल है रौशनी ढूँढना ज़माने में 

Sunday, August 28, 2011

सपना


रोज  की तरह आज फिर फूलो के बगीचे से गुजरे, तो उन सुर्ख गुलाबो देख एक ख्याल जगा . आँखों में एक चमक उभरी --अरे ये ये फुल कितने ताजगी भरे कितने शोख है और फुल से उसका नक्श उभरने लगा  . हर फुल से धीमा धीमा संगीत गुन्झ रहा था . और अनायास ही हम मुस्कुराने लगे . एक आवाज आई .तोड़ लो न फुल उसके लिए . इस ख्याल से पहले तो हम मुस्काए, फिर शर्माए और फिर घबराये ..के किसी ने देख लिया तो..और लीजिये फुल तोड़ने से पहले ही खयालो में गम हो गए ......और लगे एक सपना देखने ...खुली आँखों से सपना . सपना उस दिन का जब वो हमें फुल देंगे ......उह्ह्ह्हह्ह...कांटा सपना फिर टुटा  .....पर क्या कभी ऐसा होगा ...और होगा तो कब होगा ..जब वो हमें फुल दे ......और उनके फुल देने के अहसास से ही हमें गुदगुदा गया था और हम खो गए फिर सपने में .............गर्र्र्रर्र्र दर्र्रर्र्र ....अरे भाई मरने का इरादा है क्या .......मोटर सयिकिल की आवाज ने  हम चौंका दिया ......और हमने देखा की इस सपने को बुनते बुनते हम पार्क से रोड तक आ चुके थे ....
तभी एक कर्मचारी ने दूसरी महिला कर्मचारी  से कहा एंटी इन्होने तो नई नई  पगड़ी पहनी है ..........अप थक जोगी आराम कर लो ......और मुझे हंसी आ गई क्या ये प्यार भी नया पुराना होता है क्या ........प्यार तो प्यार है ..........
उठो उठो आज कॉलेज नहीं जाना है क्या .................लो  सपना फिर टूट गया था प्यार का ........पर ये सपना भी कितना सुहाना था  झुटा ही सही  टुटा ही सही ...............अहसास तो करा दिया .............

Tuesday, August 23, 2011

कैसे हो गए हम


 हर चीज धुंधली सी है इन दिनों 
अजनबी हवा चली  है इन दिनों 
भूल जाऊ  रहे न  याद कुछ भी 
यारो कुछ दुआ करो इन दिनों
 
चेहरे ही चेहरे कौन है ये लोग 
 पहचाने  नहीं जाते  इन दिनों
 छू कर देखा बदन तो थे 
     मशीन से  इन्सां है इन दिनों 
 
   
        सुना था के नश्वर है वो  
        फिर  कहाँ है वो  इन दिनों 
        डर गई है नए आलम  से या फिर 
            आत्मा भी मरने लगी है इन दिनों  
 

muktak


ये कोरा पन्ना न जाने कितनी बार पढ़ते है
देखने वाले पागल समझते है
वो क्या जाने इसकी गहराई का आलम
हर बार नए राज,नए अल्फाज उभरते है

Saturday, August 6, 2011

muktak


हर चीज धुंधली सी है इन दिनों
अजनबी हवा चली  है इन दिनों
भूल जाऊ  रहे न  याद कुछ भी
यारो कुछ दुआ करो इन दिनों