Friday, September 7, 2012

उन सब को समर्पित जो चले गए नई मंजिल की और .......................


चले गए तुम जहाँ
    सुना है वहां ...
असीम शांति ,
 सुख न दुःख है जहाँ 
  भय - चिंता ,
  मन, बुधि -चित नहीं है जहाँ
  चिरमय शाश्वत स्थायित्व है वहां 
 भेद - गंध 
     अपना - पराया  
  रूप -रंग नहीं है जहाँ  
 
    अच्छा बतलाओ तो 
 कौन दिशा है 
     कौन जगह है 
 जाना है सब को ,
 मानते नहीं जिसको    
 जानते नहीं जिसको
     अनजानी-अनदेखी , 
     नित्य और निश्चित मंजिल को 
      पाना है सबको ,
      जाना है सबको 
    
    अच्छा बतलाओ तो 
क्या वहां भी दीवारे है 
देश , धर्म, जाती की ,
क्या वहां भी प्रेम, नफरत,
का बंधन है 
   क्या वहां भी इन्सां- इन्सां के  दुश्मन बन जाते है ....

    अच्छा बतलाओ तो  
यादों की जंजीरे छोड़
 देश जहां तुम चले गए 
 लौट  वहा से
कौन - कभी
क्या आया है 
क्या तुम से ही थी  भीड़ यहाँ ,
जो सन्नाटा सा छाया है 
 चित सब का डूब गया है 
ख़ामोशी गहराई है 
कितनी यादे ,
कितने लोग 
 फिर भी वीरानी  छाई है 
     सूख  गए है शब्द अचानक    
     आंखे  सबकी पथराई है 
    
अच्छा बतलाओ तो 
कौन  देश है, 
कहाँ गए  ,
क्या याद तुम्हे हम आते  है
    या पल में ही  सारे रिश्ते,
सारे बन्द्धन खुल जाते है