गुच्छे घटाओं के छाने लगेके बीते दिन याद आने लगे
मेले अकेले लगाने लगे
के सोये अरमान जगाने लगे
कही कुछ अनकही सी कहानीतस्वुर वही फिर से आने लगेसुलगते सिसकते वो दागे-ए- मुहोबतके रिसने लगे करहाने लगे
पपीहे वीणा बजाने लगे
पते भी ताने सुनाने लगे
नाचन लगे मोर सुर ताल में
के भवरे नगाड़े बजाने लगे
तन्हाईया रास आने लगी
अंगड़ाईया गुनगुनाने लगी
लड़कपन हमारा जफ़ाए तुम्हारी
लबो पे वही गीत लाने लगी
बहकते बदन की महकती खुशबुआँचल हमारा उड़ाने लगेजुगनू नहाये हुए चांदनी मेंदर्पण पुराने दिखाने लगे
मनाते है खुद रूठ जाते है यु हीमचलते है खुद को सताने लगेभरी दोपहरी, रातो में युहीकोठे के चकर लगाने लगे
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with regards pawan sonti reuters