Tuesday, August 23, 2011

कैसे हो गए हम


 हर चीज धुंधली सी है इन दिनों 
अजनबी हवा चली  है इन दिनों 
भूल जाऊ  रहे न  याद कुछ भी 
यारो कुछ दुआ करो इन दिनों
 
चेहरे ही चेहरे कौन है ये लोग 
 पहचाने  नहीं जाते  इन दिनों
 छू कर देखा बदन तो थे 
     मशीन से  इन्सां है इन दिनों 
 
   
        सुना था के नश्वर है वो  
        फिर  कहाँ है वो  इन दिनों 
        डर गई है नए आलम  से या फिर 
            आत्मा भी मरने लगी है इन दिनों  
 

1 comment:

  1. ज़िंदगी बेरहम सी खिलखिला रही है इन दिनों...........

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