Saturday, September 6, 2014

वसीयत

भाई मरने से पहले वसीयत करने की इच्छा हुई। इच्छा क्या लाजमी है, हालाँकि शिक्षको के  पास वसीयत नाम की चीज़ होती नहीं पर जनाब वसीयत तो करनी ही थी।  तो लीजिये हम ने वसीयत कुछ यू लिखी आप भी पढ़ लीजिये।  आएंगे न जनाज़ा उठाने।  
सबसे पहले तो बात यू है की हमें रोना धोना कतई  पसंद नहीं तो इसलिये जनाब हमारी मौत पर रोने की पाबन्दी है तो हँसते ही आइये और  हँसते ही जाये सब लोग।  जब हमने जिंदगी भर रोने से परहेज़ किया तो अब क्यों कोई हमारा मातम मनाये।  सारी जिंदगी हम दुःख हो या सुख ख़ुशी मानते रहे  चहकते रहे गाते  रहे हँसाते रहे, तो हम हँसते हुए ही रुखसत होना चाहते है. 

अच्छा मौसिकी हमारी जिंदगी की जान रही है तो इन १३ दिन  घर में संगीत का माहौल रहे  कभी जगजीत,  कभी खान साहेब  कभी अहमद हुअसन मुहमद हुएसन तो  लता जी तो कभी किशोर  जी , तो कभी मुहमद रफ़ी। हमारी रूह तभी खुश हो कर घर से निकलेगी  .
और हाँ ये राम नाम सत्ये के नारे तो बिलकुल न लगाना जनाज़े के साथ, कोई बढ़िया सी खुशनुमा सी ग़ज़ले बजाते हुए ले जाना हमें शमशान घाट तक. मैं लिस्ट बना कर रख दूंगी ग़ज़लों और गानो की।  ये इस जनम की आखिरी मुलाकात और रुखसती संगीत के साथ हो तो माशाअल्लाह मरने का मजा ही आ जायेगा।  शमशान घाट भी चहक उठे सुरों से के क्या सुरीली संगीतमय लाश आई है।  पूरा वातावरण संगीतमय हो उठे।  कभी तो बेचारा आबाद हो वरना हमेशा मातम ही मनाता रहता है. घर में संगीत की महफिले सजी रहे इन दिनों। कभी किसी दिन कवाली की मफ़िल सजा देना तो कभी ग़ज़लों की , तो कभी फ़िल्मी गानो की तो कभी शास्त्रीय संगीत की।  हाँ सूफी मुझे बहुत पसंद है वो जरूर हो और साथ में एक दिन बढ़िया बढ़िया भजन।  
        अच्छा सब खूब सज धज के आना जैसे शादी में जा रहे हो।  मौत किसी शादी से काम थोड़े ही है एक नई  शुरुवात होने जा रही है , न जाने किस जगह किस के साथ आगे का सफर गुज़ारना है,नया गाव नए लोग।  मुझे भी अच्छे से कपड़ो में सजाना कहीं ऐसे ही कफ़न लपेटा और चल दिए।  नहीं तो म खुद एक अच्छी सी ड्रेस ले  के रख देती हु साडी मुझे बहुत पसंद है तो वो ही  पहना देना। 
फूल मुझे  बहुत पसंद है है तो गिफ्ट लाओ तो फूल ही लाना पूरा घर फूलो से सजा देना। गुलाब के महक से ही नशा होने लगता है तो चारो और गुलाब ही गुलाब हो।  
मेरा  तो सोच कर ही दिल ख़ुशी से पागल हो रहा है। 
कोई खाना खाए बैगर न जाये।  सब तरह के लज़ीज़ पकवान और फल हो जिस जो मन करे वो खाये।  और हाँ हवन के परसाद में आम रखना याद करके।  
अरे अरे अभी नहीं अभी बहुत समय बाकि है आराम से तैयारी कर लेना। जिंदगी के हर पल को हमने उत्सव की तरह जिया है तो क्यों न मौत भी उत्सव सी हो। कहते है रूह ऊपर से देख रही होती है तो हम भी देखेंगे न इस उत्सव।  
 

 

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