Monday, February 21, 2011

बंधन

        बंधन 


काश मैं बन जाती पाखी 
नीले नभ को छू आती 

१. न होता यादों का बंधन 
न भय बिछोह का क्रंदन 
उन्मुक्त फजाओं मैं 
मैं गीत प्यार के गाती 

काश मैं ------- नभ को छू आती 

२. मोह माया न लाज के कंगन 
प्रेम प्रीत न रीत की उलझन 
सावन के घोर घटायें 
न मुझ को यूँ तडपाती

काश ------नीले नभ को छू आती 

३. सतरंगी इंद्र-धनुष पे होता रैन-बसेरा 
 सीमाओं मैं बटा न होता घर-आंगन मेरा
स्वप्नीली पलकों मैं भर खुशियाँ 
चहुँ-दिशा इठलाती, गीत प्रेम के गाती 

काश---नीले नभ को छू आती

४. सारा जग होता मेरा 
न होता कोई पराया 
कभी गगन मैं कभी धरा पे 
अल्हड सपने बुन आती 

काश -----नीले नभ को छू आती 

मधु दीप सिंह  

1 comment:

  1. बहुत सुंदर गीत जिसे गुनगुना रहा हूँ. बंधनों से मुक्त होने की अभिलाषा समेटे "बंधन" - बधाई

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