बंधन
काश मैं बन जाती पाखी
नीले नभ को छू आती
१. न होता यादों का बंधन
न भय बिछोह का क्रंदन
उन्मुक्त फजाओं मैं
मैं गीत प्यार के गाती
काश मैं ------- नभ को छू आती
२. मोह माया न लाज के कंगन
प्रेम प्रीत न रीत की उलझन
सावन के घोर घटायें
न मुझ को यूँ तडपाती
काश ------नीले नभ को छू आती
३. सतरंगी इंद्र-धनुष पे होता रैन-बसेरा
सीमाओं मैं बटा न होता घर-आंगन मेरा
स्वप्नीली पलकों मैं भर खुशियाँ
चहुँ-दिशा इठलाती, गीत प्रेम के गाती काश---नीले नभ को छू आती
४. सारा जग होता मेरा
न होता कोई पराया
कभी गगन मैं कभी धरा पे
अल्हड सपने बुन आती
काश -----नीले नभ को छू आती
मधु दीप सिंह
बहुत सुंदर गीत जिसे गुनगुना रहा हूँ. बंधनों से मुक्त होने की अभिलाषा समेटे "बंधन" - बधाई
ReplyDelete