कूड़ा
मेरी ये कहानी उन सभी महिलाओं को समर्पित जो मेहनतकश है .....मर्दों से कही ज्यादा मर्द.
जानती हूँ वो नहीं पढ़ पाएंगी इसे ....उनकी किस्मत मैं कहाँ पढाई ...पर शायद वो जो इन पर अत्याचार करती है उनकी पहुँच है मीडिया तक .....उनमे से यदि एक भी बदल जाये तो मैं समझूंगी के मेरी कहानी सफल हुई .....
अरे मुई बिमला ....कहाँ मर गई
आई मेमसाहेब----मेमसाहेब की सर्द चीरती चिलाती-चीख सुन बिमला चौंक गई.....कैसी है ये दो नंबर वाली मेमसाहेब एक कप ची की प्याली दे कर सोचती है के बहुते बड़ा अहसान कर दिया ---हम पर...बदले मैं अब रोज से चार गुना कम करवाएगी एक प्याली चाय के ..-----और चाय भी कैसी काला पानी ..दो बूंद दूध डाल दिया मनो भोले शंकर पे जल चढ़ावे बखत डाल देते है ..
हे राम ...मैं भी बे बखत क्या सोच रही हूँ .....बिमला सोचते हुए उठने लगी ..राम राम अभी तो दो कोठियों का काम पड़ा है -----और कई का कूड़ा उठाना है..
बिमला ----अरे इधर तो आ चाय पि ली हो तो..जरा ककर तो दबा दे और सर मैं भी तेल लगा दे ......आजकल तू बहुत हरामखोरी करती है....अब मेमसाहेब क्या जाने बिमला की व्यथा -------------
अगर पूरी कहानी पढ़ना चाहते है तो कृपया मेल करे ----
very nice mam i would love to read the whole story......nice effort...
ReplyDeleteThanks
Deleteits really nice mam . i would love to read whole story . all tthe best
ReplyDeleteThanks
ReplyDelete